लोगों को मानसिक बीमारी के बारे में शिक्षित करने के लिए हर साल 10 अक्तूबर को पूरी दुनिया में “विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस” मनाया जाता है, इस साल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम “मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है” जिसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा और सुरक्षा प्रदान करना है।
मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने के कारक
- आनुवंशिकता :- कुछ विकार आनुवंशिकता के कारण होते हैं जैसे हंटिंगटन रोग। सिजोफ्रेनिया रोग के लिए एलील्स ज़िम्मेदार है। अल्जाइमर भी वंशानुगत है।
- गर्भावस्था के दौरान मां की परेशानी शिशु में मानसिक विकार ला सकती है। गर्भवती नशे या अल्कोहल सेवन करती है तो भी दिक्कत होगी।
- रासायनिक असंतुलन :- अवसाद के लिए मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन को ज़िम्मेदार माना जाता है। हालांकि कई अध्ययन इस सिद्धांत को नहीं मानते हैं।
- मनोवैज्ञानिक कारण :- बचपन में गंभीर आघात, भावनात्मक-शारीरिक या फिर यौन शोषण… माता-पिता की हानि, उपेक्षा और दूसरों से सम्बंध स्थापित करने की खराब क्षमता।
- खराब पारिवारिक माहौल भी भावनाओं को व्यक्त करने में भी रोड़ा बनता है।
- मानसिक आघात :- ऐसी घटनाएं, जो आपको शारीरिक या भावनात्मक चोट पहुंचाती है। यह आघात आप पर स्थायी प्रभाव डाल सकता है।
- सामाजिक कारण :- जाति, वर्ग, लिंग, धर्म, परिवार, सहकर्मी नेटवर्क और हमारी सामाजिक भूमिकाएं सभी बीमारी का कारण हो सकती हैं।
सुधार के कुछ महत्त्वपूर्ण कारक
- सक्रिय रहो :- शारीरिक गतिविधि मानसिक स्वास्थ्य बढ़ाने का एक शक्तिशाली उपकरण है। व्यायाम से एंडोर्फिन यानी फील-गुड हार्मोन निकलता है, जो आपके अच्छा महसूस करता है।
- सामाजिक सम्बंधों का पोषण करें :- दोस्तों, परिवार और पालतू जानवरों के साथ जुड़ने से अकेलेपन को कम करके अपनेपन की भावना मिल सकती है।
- नींद को प्राथमिकता दें :- प्रत्येक रात 7-9 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद का लक्ष्य रखें। नींद की गुणवत्ता में सुधार के लिए आरामदायक सोने की दिनचर्या बनाएं।
- स्वस्थ आहार, स्वस्थ मन :- फलों, सब्जियों, साबुत अनाज, लीन प्रोटीन और स्वस्थ वसा से भरपूर संतुलित आहार लें।
- डॉक्टर की मदद :- मानसिक परेशानी है, तो संकोच न करें। चिकित्सक, परामर्शदाता और मनोचिकित्सकों से तत्काल संपर्क करें।
- योग संग ध्यान का अभ्यास करें। ध्यान को अपनी दिनचर्या में शामिल करने से तनाव में कमी, ध्यान में वृद्धि और समग्र रूप से सुधार हो सकता है। रोगियों के लिए, दवाओं के साथ-साथ ध्यान व योग रामबाण हैं।
भारत का युवा प्रभावित
एसोचैम के कोरोना महामारी से पहले के सर्वेक्षण के अनुसार भारत के निजी क्षेत्र में 40% से अधिक कर्मचारी अवसाद से पीड़ित हैं। 2021 में एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार, 21-35 साल वर्ग के कामकाजी लोगों का एक बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत में 1.5 करोड़ लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की ज़रूरत है।
क्या है यह मानसिक स्वास्थ्य?
डॉ. ओमप्रकाश, इहबास अस्पताल, नई दिल्ली का कहना है कि स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ़ शारीरिक स्वस्थता से कभी नहीं होता। इसका मतलब शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य है। अगर मानसिक रोगों की बात करें तो अल्जाइमर, डिमेंशिया, चिंता, ऑटिज्म, डिस्लेक्सिया, तनाव, नशे की लत, कमजोर याददाश्त, भूलने की बीमारी और भ्रम इसके स्वरूप हैं। जैसे उदासी महसूस करना, ध्यान केंद्रित करने में कमी, दोस्तों से अलग होना, थकान और ज़्यादा नींद इसके लक्षण हैं।
बीच में छोड़ देते हैं इलाज
डॉ. यतन पाल सिंह बल्हारा, एम्स, नई दिल्ली का कहना है कि हमारे समाज में अभी भी मानसिक स्वास्थ्य को सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है। कई मामलों में परिवार में भी इलाज़ के लिए इच्छा शक्ति देखने को नहीं मिलती है।
ऐसे मामले अक्सर देखने को मिलते हैं और इनकी वज़ह से उपचार में देरी से बीमारी और अधिक खराब स्थिति में पहुंच जाती है। पोस्ट-ट्रीटमेंट गैप में उपचार के बाद पुनर्वास बहुत ज़रूरी है लेकिन इस पर बहुत कम काम होता है।
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